छत्तीसगढ़ में आरंग को मंदिरों की नगरी कहा जाता है।राजा मोरध्वज की राजधानी आरंग में मिलने वाले प्राचीन और दुर्लभ मूर्ति तथा ऐतिहासिक धरोहरों के कारण ही आरंग ही पहचान देश में फैली है।लेकिन विगत कुछ दिनो से आरंग नगर में ऐसा हो रहा है जो अभी तक कही भी न तो देखने को मिला है और न ही सुनने का। दरअसल सितम्बर 2021 में आरंग के अंधियार खोप तालाब में गहरीकरण के दौरान प्राचीन और दुर्लभ जैन तीर्थंकर की सादृश्य प्रतिमा मिली थी। जिसे नगरवासियों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित भांडदेवल मंदिर में सुरक्षित रखा गया है।लेकिन इस प्राचीन और दुर्लभ मूर्ति को आरंग से ले जाने प्रशासनिक दबाव बन गया है।
मूर्ति को डोंगरगढ़ के जैन समाज द्वारा ले जाने का मांग किया गया, जिस पर रायपुर जिला प्रशासन द्वारा तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे ने मूर्ति को जैन समाज डोंगरगढ़ को सौंपने का आदेश जारी कर दिया। आदेश की जानकारी आरंग के स्थानीय लोगों को होने के बाद से कलेक्टर के आदेश का विरोध हो रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने इस आदेश का विरोध कर संबंधित विभाग को पत्र भी लिखा है।लेकिन प्रशासनिक दबाव के कारण मूर्ति को डोंगरगढ़ ले जाने पर रोक नही लग पाई है।लोगो का कहना है कि आरंग की पहचान यहां के प्राचीन मूर्ति,अवशेषों और ऐतिहासिक धरोहरों के कारण होती है।अगर ये प्राचीन मूर्ति यहां से चली जायेगी तो इसी तरह कोई भी समाज ऐसे ही मांग करेगा और यहां की कई मूर्तियों को ले जाएगा। नागरिकों की बिना सहमति के आरंग की धरोहरों को ले जाने अनुचित है।
इतिहास के जानकारों का कहना है कि निखात निधि अधिनियम 1878 के प्रावधान का हवाला देकर कलेक्टर के द्वारा इस प्राचीन मूर्ति को जैन समाज को पूजा पाठ के लिए देने का आदेश जारी किया गया है, जबकि इस अधिनियम में कलेक्टर को कोई शक्ति प्रदान नही है जिससे वे देश के पुरातात्विक धरोहर को किसी व्यक्ति अथवा समाज को पूजा पाठ के लिए दे।इसे पुरातात्विक महत्व की धरोहरों का ट्रांसपोर्टिंग करना भी गलत है।इस मामले पर स्थानीय अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे है।
यथा संभव पुरातात्विक महत्व की मूर्ति अथवा वस्तुएं जहां से प्राप्त होते है, उन्हे उसी स्थान पर या निकटतम पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सुरक्षा एवम संरक्षण हेतु रखा जाता है।लेकिन आरंग के मामले में ऐसा नही हो रहा है।
उल्लेखनीय है की पहले भी आरंग थाने में रखी अनेकों प्राचीन मूर्तियां अन्यत्र ले जाई गई है जिसके विषय में आज तक कोई पुष्ट जानकारी नहीं है। यही क्रम चलता रहा तो आरंग की ऐतिहासिकता पर ही सवालिया निशान उठने लगेगा। नगरवासियों की मांग है कि रायपुर कलेक्टर के त्रुटिपूर्ण आदेश को शासन निरस्त करे और आरंग के धरोहरों को सुरक्षित करने आरंग में ही संग्रहालय बनाने आवश्यक कदम उठा।